न्यायाधीशों की हक़ीक़त क्या सुनाएँ

न्यायाधीशों की हक़ीक़त क्या सुनाएँ तय हैं जब पहले से ही सारी सज़ाएँ   काँच के इस शहर में सब कुछ हरा है हैं अगर सूखी तो बस संवेदनाएँ   फूल, ख़ुश्बू, ओस की बूँदें सभी कुछ सोखती फिरती हैं अब ज़ालिम हवाएँ   जिनके तलुओं से लहू टपका, उन्हीं से मंज़िलों को भी हैं … Continue reading न्यायाधीशों की हक़ीक़त क्या सुनाएँ